Tuesday 23 February 2016


विदाई

विदाई, ये कहते – कहते मेरी आँख भर आती थी…
सपने जो मेरे माँ-बाप ने संजोये थे, पूरे वो कहीं हो रहे थे…
एक डर था सीने में मेरे, जुदा हम जो हो रहे थे…
मेरी हर गलती को ढक लेती थी आँचल तले, इस तरह माँ मुझे सवार लेती थी…
बापू प्यार करते थे, शब्दों मे बयां नही करते थे…
दोस्तो की एक दुनिया थी, मस्ती मे भाई बहन भी मुझे शामिल कर लेते थे…
ऐसे, सब को संजो के, एक दुनिया मैंने बसाई थी…
पराई होने चली अब मैं, दुनिया नही भुलाई थी…
वो कल भी अपने ही रहेंगे, जो कल अपने थे, मेरे सपने थे…
जुदा हम जो हो रहे थे…
मेरे अपने तो वो ही रहेंगे, आख़िर मेरे सपने तो वोही थे…

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